
धरमजयगढ। छत्तीसगढ़ प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ जिस नवयुग की उम्मीद जनता ने संजोई थी, वह स्वप्न अब धीरे-धीरे धूमिल होता जा रहा है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारों से गूंजता सत्ता गलियारा फिलहाल सुशासन तिहार के उत्सव में मग्न है, जबकि जमीनी हकीकत इसके विपरीत किसी करुण कथा की भांति सामने आ रही है। रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ क्षेत्र अंतर्गत ग्राम भालूपखना में संचालित लघु जल विद्युत परियोजना एक जीवंत उदाहरण बन चुकी है कि कैसे सत्ता और तंत्र मिलकर लोक की आवाज को अनसुना कर रहे हैं। बिना आवश्यक वैधानिक स्वीकृतियों के, प्रभावित वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग की अनुमति लंबित रहने के बावजूद, परियोजना का निर्माण कार्य निर्बाध गति से जारी है। यह न केवल वन संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन का घोर उदाहरण है, बल्कि जनभावनाओं के निरंतर दमन का भी जीवंत प्रतीक बन चुका है। स्थानीय वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को नियमों के पालन हेतु पूर्व में किए गए पत्राचार भी धूल फांक रहे हैं। स्पष्ट है कि जनहित की बात करते हुए, तंत्र अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति में संलिप्त दिखाई दे रहा है। शासन-प्रशासन का यह रुख तंत्र की जड़ता और जनविरोधी प्रवृत्ति को उजागर करता है। भालूपखना के प्रभावित ग्रामीणों ने निजी भूमि के अतिक्रमण को लेकर स्थानीय राजस्व अधिकारी को सीमांकन हेतु निवेदन किया है। ग्रामीणों का आरोप है कि परियोजना के लिए निर्धारित सीमा से अधिक भूमि पर अवैध कब्जा कर कार्य किया जा रहा है। अपनी व्यथा और अधिकार की रक्षा हेतु ग्रामीणों ने प्रशासन को 15 दिवस का अल्टीमेटम दिया है, चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र निष्पक्ष सीमांकन न हुआ तो वे आंदोलन की राह पकड़ेंगे। प्रशासन की मौजूदा कार्यशैली और निष्क्रियता को देखते हुए यह आशंका गहराती जा रही है कि ग्रामीणों को न्याय मिल पाना कठिन होगा। सत्ता की चकाचौंध में दबती आमजन की करुण पुकार आज भी सवाल कर रही है— क्या लोकतंत्र में लोक का स्थान अब केवल औपचारिकता मात्र रह गया है?—
{ राजू यादव धरमजयगढ की खास रिपोर्ट!!”}