



रायगढ़। गाँव की चौपाल अब फिर से मेल-मिलाप और सुलह का केंद्र बनेगी। छोटे-छोटे विवाद, जो अब तक अदालतों और थानों के चक्कर लगाते थे, अब गाँव की चौपाल पर आपसी सहमति से सुलझेंगे। जिला प्रशासन ने इस दिशा में एक अभिनव पहल करते हुए सामुदायिक मध्यस्थता की व्यवस्था लागू करने की शुरुआत की है।
बता दें, ग्राम पंचायत स्तर पर कार्यरत पटवारी, सरपंच, सचिव और कोटवारों को इस प्रक्रिया का विशेष प्रशिक्षण नगर निगम ऑडिटोरियम रायगढ़ में दो पालियों में दिया गया। पहली पाली में धरमजयगढ़, लैलूंगा और तमनार विकासखंड के प्रतिनिधियों को तथा दूसरी पाली में रायगढ़, पुसौर, खरसिया और घरघोड़ा ब्लॉक के अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया गया।कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के छायाचित्र पर दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस अवसर पर उच्च न्यायालय बिलासपुर की मध्यस्थ अधिवक्ता हमीदा सिद्दीकी, कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी, जिला पंचायत सीईओ जितेंद्र यादव, अपर कलेक्टर अपूर्व प्रियेश टोप्पो सहित अनेक अधिकारी व अधिवक्ता उपस्थित थे।कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी ने कहा कि यह पहल गाँवों में भाईचारे और सद्भाव को नई दिशा देगी। यदि विवाद पंचायत स्तर पर ही हल हो जाएँगे तो समय और धन दोनों की बचत होगी और न्यायालय व पुलिस का बोझ घटेगा। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से कहा कि समाज का विश्वास पहले से ही आप पर है, अब यह पहल आपको औपचारिक जिम्मेदारी भी देती है।जिला पंचायत सीईओ जितेंद्र यादव ने बताया कि आगामी 2 अक्टूबर को ग्राम सभाओं में अविवादित नामांतरण, बँटवारा और अतिक्रमण जैसे विषयों पर चर्चा होगी तथा हर पंचायत में मध्यस्थता पैनल का चयन किया जाएगा।
वहीं मध्यस्थ अधिवक्ता हमीदा सिद्दीकी ने कहा कि मध्यस्थता आज की आवश्यकता है। महात्मा गांधी स्वयं चाहते थे कि विवाद अदालत की चौखट पर न जाकर आपसी बातचीत से सुलझें। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में कोई हारता या जीतता नहीं है, बल्कि दोनों पक्ष एक ऐसा समाधान खोजते हैं, जो सभी को स्वीकार्य हो। यह पूरी तरह गोपनीय और अंतिम निर्णय होता है।
उन्होंने उदाहरणों और केस स्टडी के माध्यम से समझाया कि भूमि संबंधी झगड़े, घरेलू कलह और छोटे स्तर के विवाद आसानी से मध्यस्थता के जरिये हल किए जा सकते हैं। उन्होंने “पंच परमेश्वर” की भारतीय परंपरा को याद दिलाते हुए कहा कि जिस तरह गाँव के बुजुर्ग चौपाल पर बैठकर विवाद सुलझाते थे, उसी परंपरा का आधुनिक और कानूनी रूप है सामुदायिक मध्यस्थता। वहीं रायगढ़ जिला प्रशासन की यह पहल न केवल न्यायालयों पर बोझ घटाएगी, बल्कि गाँव-गाँव में सामाजिक समरसता और भाईचारे को भी मजबूती देगी।