



धरमजयगढ़। नगर के विकास की जिम्मेदारी जिन कंधों पर होनी चाहिए, वे ही कंधे अब निजी स्वार्थ के बोझ तले दबते जा रहे हैं। शासन द्वारा नगरवासियों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपलब्ध कराए गए संसाधनों का प्रयोग अब किसी और ही दिशा में हो रहा है। धरमजयगढ़ नगर पंचायत के पास शासन से प्रदत्त स्काईलिफ्टर और जेसीबी मशीनें हैं, जिनका उद्देश्य नगर की सड़कों, विद्युत व्यवस्था और साफ-सफाई को दुरुस्त रखना था, किंतु हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है।
विद्युत व्यवस्था बदहाल, कर्मचारी प्राइवेट कंपनी के पेड़ काटने में व्यस्त
बता दें,नगर में बिजली की समस्या दिनोंदिन गंभीर होती जा रही है, परंतु जिन कर्मचारियों को इसे सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वे इन दिनों नगर से अधिक निजी कंपनियों की सेवा में संलग्न हैं। स्काईलिफ्टर मशीन का प्रयोग बिजली मरम्मत की बजाय, मलका कंपनी के लिए पेड़ काटने जैसे कार्यों में हो रहा है। मशीन और नगर पंचायत के कर्मचारी दिनभर प्राइवेट कंपनी की सेवा में लगे रहते हैं, जिससे नगरवासियों को उनके हक की सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।
रसीद प्रणाली का पालन नहीं, मनमानी पर उतारू व्यवस्था
वहीं विशेष सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, प्राइवेट कार्यों के लिए नगर पंचायत की किसी भी मशीन का उपयोग करने पर न तो कोई राशि जमा कराई जा रही है और न ही रसीद काटी जा रही है। पूर्व में तय नियमों के अनुसार किसी भी मशीन को निजी उपयोग हेतु तभी भेजा जा सकता था जब नगर पंचायत कार्यालय में घंटे के हिसाब से राशि जमा कर रसीद प्राप्त की जाए। परंतु अब ये सारी प्रक्रियाएं केवल कागज़ों में रह गई हैं। अधिकारी तय करते हैं कि कितना पैसा लेना है और कर्मचारी चुपचाप “मनमाफिक” रकम लाकर दे देते हैं।
परिषद मौन क्यों? सवालों के घेरे में जनप्रतिनिधि
नगर की इस दुर्दशा को देखते हुए सबसे बड़ा प्रश्न यही उठता है – जब परिषद को सब कुछ ज्ञात है, तो वह मौन क्यों है? विपक्ष हो या पक्ष, सभी चुपचाप तमाशबीन बनकर बैठे हैं। नगर की सड़कों पर गंदा पानी बह रहा है, जल आपूर्ति बाधित है, लेकिन जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकता कुछ और ही दिख रही है। विकास के नाम पर केवल व्यक्तिगत स्वार्थ साधे जा रहे हैं।
बस स्टैंड पर अतिक्रमण, अधिकारियों की अनदेखी
ज्ञात हो गर्मी के मौसम में गन्ना रस विक्रेताओं को अस्थायी दुकानें लगाने के लिए नगर पंचायत द्वारा स्थान उपलब्ध कराया गया था। मौसम बीत चुका है, दुकानें बंद हो चुकी हैं, परंतु कई दुकानदार अब भी अपने प्लास्टिक के ढांचे वहां से नहीं हटाए हैं। यह अतिक्रमण खुलेआम नगर पंचायत की नाक के नीचे फल-फूल रहा है। इससे भी गंभीर बात यह है कि उनसे वसूली गई राशि वास्तव में नगर पंचायत के खाते में गई भी या नहीं – यह आज जांच का विषय है।

व्यवस्था का पतन और जनता की पीड़ा
धरमजयगढ़ नगर पंचायत की यह तस्वीर बेहद चिंताजनक है। जहां शासन संसाधन मुहैया कराकर विकास की आस लगाए बैठा है, वहीं जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी और जनप्रतिनिधि उन संसाधनों का दोहन कर निजी लाभ की फसल काटने में व्यस्त हैं। अब समय आ गया है कि नगरवासियों को अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़नी होगी, वरना व्यवस्था की यह लापरवाही आने वाले समय में और भी गहरी होती चली जाएगी।