
धरमजयगढ़ (रायगढ़)। धरमजयगढ़ विकासखंड के ग्राम पंचायत तेन्दुमुड़ी में शनिवार को हुई विशेष ग्राम सभा में ग्रामीणों ने पेशा कानून की शक्तियों का प्रयोग करते हुए बड़ा निर्णय लिया।
ग्रामसभा ने मेसर्स अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड (अडानी ग्रुप) की प्रस्तावित पुरुंगा भूमिगत कोयला खदान परियोजना को सर्वसम्मति से खारिज करते हुए, आगामी 11 नवंबर को निर्धारित पर्यावरणीय जनसुनवाई को निरस्त करने का प्रस्ताव पारित किया।
ग्राम सभा को मिली जानकारी के अनुसार, कंपनी ने 869.025 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 2.25 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) क्षमता वाली भूमिगत खदान का प्रस्ताव रखा है। इसमें 621.331 हेक्टेयर वन भूमि, 26.898 हेक्टेयर गैर-वन भूमि, तथा 220.796 हेक्टेयर निजी भूमि शामिल है, जो सीधे तौर पर तेन्दुमुड़ी, पुरुंगा और साम्हरसिंघा ग्रामों को प्रभावित करेगी।

ग्राम सभा की आपत्तियाँ और चिंताएँ
ग्रामवासियों ने कहा कि—
- वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत गाँव के निजी भूमि दावे अब तक लंबित हैं। बिना उनकी स्वीकृति किसी परियोजना की शुरुआत ग़ैरक़ानूनी होगी।
- यह क्षेत्र पेशा कानून (PESA Act) और छत्तीसगढ़ पेशा अधिनियम 2022 के तहत संरक्षित है। इसलिए ग्राम सभा की अनुमति के बिना कोई खनन या भूमि अधिग्रहण मान्य नहीं है।
- प्रस्तावित क्षेत्र में कोकदार आरक्षित वन क्षेत्र आता है, जो अत्यंत घना जंगल है तथा हाथियों का प्रमुख विचरण क्षेत्र है।
- भूमिगत खनन से जलस्रोतों के सूखने, नदी-नालों में जल भराव, और जैव विविधता के नष्ट होने की आशंका जताई गई।
ग्रामवासियों ने आँकड़े देते हुए बताया कि धरमजयगढ़ वनमंडल में अब तक 167 ग्रामीणों की हाथी हमलों में मौत हो चुकी है, जबकि 68 हाथियों की भी मृत्यु दर्ज की गई है। ऐसे में उन्होंने चेताया कि यदि खनन कार्य प्रारंभ हुआ तो मानव-हाथी संघर्ष और बढ़ेगा, जिससे जन-जीवन संकट में पड़ जाएगा।
ग्राम सभा का सर्वसम्मत निर्णय
ग्राम तेन्दुमुड़ी की ग्राम सभा ने पेशा कानून के अधिकारों का प्रयोग करते हुए निर्णय लिया कि —
“मेसर्स अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड की प्रस्तावित पुरुंगा भूमिगत कोयला खदान परियोजना को ग्राम सभा स्वीकृति नहीं देती और 11 नवंबर 2025 को निर्धारित पर्यावरणीय जनसुनवाई को निरस्त करती है।”
साथ ही ग्रामवासियों ने प्रशासन और कंपनी को चेताया कि—
“ग्राम क्षेत्र में खनन के समर्थन में किसी भी गतिविधि को सख्त रूप से प्रतिबंधित किया जाएगा।”
पेशा कानून क्या है?
“पेशा” (PESA – Panchayats Extension to Scheduled Areas Act, 1996) एक संवैधानिक प्रावधान है जो पाँचवीं अनुसूची क्षेत्रों के आदिवासी ग्राम सभाओं को भूमि, जल, जंगल और संसाधनों पर निर्णय का अधिकार देता है।
इस कानून के अंतर्गत ग्राम सभा किसी भी बाहरी परियोजना—चाहे वह खनन, उद्योग या भूमि अधिग्रहण से जुड़ी हो—को स्वीकृत या अस्वीकृत करने का अंतिम अधिकार रखती है।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या प्रशासन ग्रामसभा के इस संवैधानिक निर्णय का सम्मान करते हुए जनसुनवाई निरस्त करेगा, या फिर विरोध के बावजूद सुनवाई आयोजित की जाएगी,यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।


