
हम अपने जीविका के लिए अपने ही भूमि लुटते हुए देख रहें हैं,और हम जीवन की व्यथा किस किस को सुनाये सहाब,अब हम हारने लगे-पीड़ित किसान!
धरमजयगढ। रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ तहसील अंतर्गत ग्राम भालूपखना इन दिनों एक बड़े विवाद का केंद्र बना हुआ है। यहां संचालित लघु जल विद्युत परियोजना को लेकर ग्रामीणों और कंपनी प्रबंधन के बीच संघर्ष लगातार गहराता जा रहा है। धनवादा कंपनी की यह लघु जल विद्युत परियोजना शुरुआत से ही विवादों से घिरी रही है। वन संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन से लेकर पर्यावरणीय अनियमितताओं तक, इस परियोजना के खिलाफ अनेक बार आवाजें उठी हैं। मगर विडंबना यह है कि प्रशासन की भूमिका हमेशा ही ढुलमुल और निष्क्रिय रही है। कार्रवाई के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति की गई, और ज़मीनी हक़ीक़त को लगातार नजर अंदाज किया गया। लेकिन अब जब किसानों की निजी भूमि पर अतिक्रमण का खुला खुलासा हो चुका है, कंपनी प्रबंधन इस बात को रफा-दफा कराने की कोशिश कर रहा है, जबकि प्रभावित किसान इसे ज़मीन की लूट करार दे रहे हैं। ताजा मामला बता दें, नहर कार्य में किसानों के भुअर्जन के अलावा किसानों की निजी अतिरिक्त भूमि पर अवैध रूप से रास्ता बनाए जाने एवं मिट्टी पत्थर से लेकर शेड निर्माण का मामला प्रकाश में आया। और वहीं किसानों ने बताया कि किसानों की शिकायत पर हुए राजस्व सीमांकन में यह तथ्य उजागर हुआ कि कंपनी ने अपनी अधिकृत परियोजना सीमा से बाहर जाकर ग्रामीणों की निजी जमीन पर अतिक्रमण किया है। और उस पर अस्थायी रूप से मार्ग निर्माण कर लिया है। सीमांकन के बाद तैयार पटवारी प्रतिवेदन में साफ़ तौर पर उल्लेख है, कि कंपनी द्वारा प्रभावित किसानों की भूमि पर निर्माणधीन नहर के अगल बगल अस्थायी मार्ग बनाकर कब्जा जमाया गया है, और इस भूमि का उपयोग कंपनी के भारी वाहनों की आवाजाही के लिए किया जा रहा है। और किसानों ने चौंकाने वाली बात बताई है कि इस भूमि के उपयोग के एवज में किसानों को किसी प्रकार का मुआवजा अथवा भूमि हस्तांतरण का दस्तावेज भी नहीं सौंपा गया।जिसे लेकर किसानों ने अपने उक्त जमीन पर कब्जा कर घेराव किया,जिसके बाद कंपनी प्रबंधन की नहीं बल्कि स्थानीय प्रशासन के आलाधिकारी कर्मचारियों के फोन किसानों के पास डरावने भरे शब्दों में आने लगे। किसान भयभीत हो उठे, उन्होंने बताया कि हमारे जमीन में आज हमें ही धमकाया जा रहा है, जबकि हमने बेवजह कंपनी प्रबंधन के ऊपर आरोप नहीं लगाया है।
किरायानामा बना पक्षपात की मिसाल
मामले में लगातार गांव के एक जागरूक किसान कमलसाय बैगा का नाम सामने आने लगा,जिसकी भूमि खसरा नंबर 314/1 रकबा 0.837 को कंपनी प्रबंधन द्वारा कब्जा किया गया है, और उक्त कब्जा भूमि का कंपनी प्रबंधन ने किसान से किराया नामा कराकर रह रहा है, जहां पर कंपनी प्रबंधन अपना आफिस,वाहन रखने एवं आने जाने के लिए कच्ची मार्ग में प्रयुक्त कर रहा है। और वहीं सीमांकन के बाद कमलसाय बैगा द्वारा बताया गया कि कंपनी प्रबंधन द्वारा सिर्फ आफिस बनाने का जगह की मांग किया है, ऐसा समझकर किराया नामा कर उक्त जमीन को दिया है, लेकिन अब तो रास्ता भी बनाया,वाहन रखने जगह भी कब्जा कर लिया। आगे उन्होंने कहा उसी लेकर अतिरिक्त भूमि पर घेराव किया ताकि उक्त भूमि खेती कर सकूं। आगे उन्होंने कहा इसी को लेकर स्थानीय प्रशासन द्वारा हम किसानों को लगातार धमकाते हुए नजर आते रहे हैं,कहा जा रहा कि कंपनी प्रबंधन द्वारा जहां पर कंपनी प्रबंधन द्वारा आफिस, वाहन रखने, कच्चा मार्ग बनाया है, किसान को यानी मुझे कमल साय को महीने में दस हजार रुपए किराया दे रहा है,जिसका स्टाम्प पेपर में आवश्यक लिखा पढ़ी की गई है। आगे उन्होंने कहा बाकी दिए जा रहे किराया भूमि का क्षेत्रफल और आज के दौर में बहुत कम है। फिलहाल मेरे द्वारा किए गए घेराव को तहसीलदार कापू द्वारा उक्त स्थान पर से हटवा दिया गया।

लेकिन वहीं दूसरी तरफ अन्य किसानों का बड़ा सवाल वही प्रशासन से, कि पटवारी सीमांकन के बाद पंचनामा में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि किसान पांचोबाई बैगा पति मयाराम के भूमि खसरा नंबर 309/1 में भी धनबादा कंपनी के द्वारा नहर कार्य हेतु अस्थायी शेड निर्माण किया गया है, तथा खसरा नंबर 343/1 में नहर कार्य हेतु अस्थायी कच्ची मार्ग बनाया गया है, और वहीं पांचो बाई के भूमि पर मिट्टी पत्थर से डंप भी किया गया है। जिसका कंपनी प्रबंधन द्वारा किरायानामा क्यों नहीं कराया गया है? क्या केवल एक किसान को देकर और किसानों के आवाज को दबाने का रफा-दफा करने का कोशिश किया गया है? और इतनी बड़ी कंपनी प्रबंधन द्वारा किसानों के साथ किए जा रहे अन्याय प्रशासन को नहीं दिख रहा? और अन्य प्रभावित किसानों के भूमि का सीमांकन किया गया है, लेकिन आवश्यक दस्तावेज किसानों को उपलब्ध नहीं हो सका है। फिर भी वहीं किसान – कांतीबाई, मालिक राम, सुग्रीव बैगा एवं अन्य प्रभावित किसानों का कहना है, कि उनके भूमि पर भी किसी के भूमि पर शेड निर्माण तो किसी के भूमि पर कच्ची मार्ग बनाकर कंपनी प्रबंधन द्वारा कब्जा किया गया है। लेकिन वहीं कंपनी प्रबंधन द्वारा केवल एक किसान के लिए अनुबंध और बाकी किसानों के भूमि पर अतिक्रमण। संबंध में किसान पांचोबाई ने मायुसी भरे शब्दों में कहा – “यह ज़मीन हमारे पुरखों की है, हमारे खून-पसीने की है। कोई कंपनी आए और हमें ही बेदखल कर दे, यह न्याय नहीं, अन्याय का नगाड़ा है। अगर हम इसके खिलाफ बोलें, तो अधिकारी धमकाते हैं। ये कैसी व्यवस्था है, जहां अन्यायी सम्मानित है और पीड़ित अपराधी बना दिया गया है?” आगे पीड़ित किसानों ने कहा कि हमारे जमीन पर बाहर लोग आकर धड़ल्ले से कब्जा कर मन चाहा कुछ भी कर ले रहा, और उसका विरोध अगर हम करें,तो कहां करें, क्योंकि यहां के स्थानीय प्रशासन कंपनी प्रबंधन का तरफदारी करते हुए उल्टे हमारे ऊपर हावी हो रहे, और धमकी चमकी देते रहे हैं। कभी तहसीलदार धमकाना,तो कभी एसडीएम का उंचे स्वर में फटकार लगाना,कभी पुलिस प्रशासन से एफआईआर का डर। तो फिर आखिर हम जायें तो कहां जाएं,समझ से परे हो गया है। आगे उन्होंने मायुसी भरे शब्दों में कहा कि एक रास्ता हमारे लिए राज्य का मुखिया विष्णु देव साय ही विकल्प हैं। बाकी हम अपने जीविका के लिए अपने ही भूमि लुटते हुए देख रहें हैं,और हम जीवन की व्यथा किस किस को सुनाये सहाब,अब हम हारने लगे। बहरहाल मामले में धनबादा कंपनी प्रबंधन का रैवया, स्थानीय प्रशासन का शासन और भालूपखना के आदीवासी पीड़ित किसानों की असहाय चीख समझ से परे है।

