
रायगढ़। दीपावली के दुसरे दिन देशभर में आज श्रद्धा और उल्लास के साथ गोवर्धन पूजा मनाई जा रही है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि प्रकृति, पशुधन और पर्यावरण संरक्षण के संदेश से भी जुड़ा हुआ है। आज के दिन भगवान श्रीकृष्ण की आराधना कर गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक स्वरूप बनाया जाता है, जिसे फूलों, दीपों और मिठाइयों से सजाया जाता है।
व्रत कथा : पुराणों के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रजवासी हर वर्ष इंद्रदेव की पूजा कर रहे हैं, तो उन्होंने उन्हें समझाया कि वर्षा और अन्न का स्रोत इंद्र नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत है, जो पेड़-पौधों, पशुओं और मनुष्यों के जीवन का पालन करता है। श्रीकृष्ण ने स्वयं गोवर्धन की पूजा आरंभ की और सभी ब्रजवासियों को भी ऐसा करने को कहा। इंद्र को यह बात नागवार गुज़री, उन्होंने क्रोधित होकर मूसलाधार वर्षा बरसाई। तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे ब्रज की रक्षा की। सात दिन बाद इंद्र को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी। तभी से गोवर्धन पूजा का यह पावन पर्व मनाया जाने लगा।
पर्व की परंपरा : इस दिन ग्रामीण अंचलों में गोबर से गोवर्धन पर्वत का रूप बनाकर उसकी पूजा की जाती है। गोधन, अन्नकूट और अन्नदान का विशेष महत्व रहता है। घर-घर में खीर, पूड़ी, सब्जी, भुजिया सहित अन्नकूट प्रसाद बनाकर भगवान को अर्पित किया जाता है। मंदिरों में भजन-कीर्तन और पूजा-अर्चना से वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
आध्यात्मिक संदेश :गोवर्धन पूजा हमें यह सिखाती है कि प्रकृति ही हमारी पालक माता है, और उसका सम्मान ही सच्ची पूजा है। यह पर्व मनुष्य, पशु और प्रकृति के बीच सामंजस्य की अद्भुत भावना को प्रकट करता है। अंत में…दीपों की ज्योति के साथ जब श्रद्धालु “गोवर्धनधारी श्रीकृष्ण भगवान की जय” के नारे लगाते हैं, तो मानो पूरा वातावरण भक्ति और प्रकृति प्रेम से सराबोर हो उठता है।


